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सिक्कों का ख़ज़ाना
बिहार संग्रहालय में एक व्यापक तथा महत्वपूर्ण सिक्कों का संग्रह है- 500 स्वर्ण सिक्कों समेत पाटलिपुत्र के अतीत से लेकर आधुनिक समय तक के कुल क़रीब 30,000 सिक्के हैं। सिक्का-दीर्घा इस संग्रह को विशिष्ट रूप देती है ।
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ताम्र प्रतिमा
इस संग्रहालय में बहुत सारी सूक्ष्म ताम्र प्रतिमाएं हैं, जिनमें से ज़्यादातर गुप्तोत्तर काल (6ठी से 9वीं सदी) की हैं। सबसे पुराना चित्र शुंगवंश काल (185 ईपू, मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद सबसे प्रबल शासनवंश) का बताया जाता है। प्रस्तर प्रतिमाओं की तरह ज़्यादतर का विषय-वस्तु धार्मिक है, लेकिन इनमें बड़ी संख्या जैन धर्म से संबंधित चित्रों की है (महावीर की एक शानदार मूर्ति दूसरे तल पर अन्य जैन तीर्थंकरों के साथ प्रदर्शित की गई है) । जैन प्रतिमाओं में से ज़्यादातर का काल-संबंध कुषाणों तथा प्रारंभिक गुप्तकाल से है। ताम्र प्रतिमाएं पाषाण प्रतिमाओं के मुक़ाबले ज़्यादा छोटी हैं, इन प्रतिमाओं के साथ संग्रह में छोटी ताम्र प्रतिमाओं की संख्या भी अच्छी ख़ासी है।
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चित्रकारी एवं लघु-चित्र
दृश्य कला संग्रह में राजस्थानी लघु-चित्र, पटना एवं दिल्ली शाखा के लघु-चित्र हैं। इनमें से अधिकतर जो आधुनिक युग (18वीं सदी तथा 19वीं सदी) के हैं, उन्हें चयनित डेनियल प्रिंट की तरह ऐतिहासिक कला दीर्घा में प्रदर्शन के लिए रखा गया है।
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थंग्कास/ लघु-चित्र/ पोशाक लैब
37 तिब्बत थंग्कास का एक संग्रह है, जो 15वीं से 20वीं शताब्दी तक का है और इसमें हर युग के एक दलाई लामा के चित्र को शामिल किया गया है। ये दिलचस्प और महत्वपूर्ण हैं, तथा इन्हें यहां विशेषरूप से रखा गया है। ऐतिहासिक कला दीर्घा के बौद्धकला खंड में इन संग्रहों को दर्शाया गया है।
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पोशाक/ कपड़े/ थंग्कास
संग्रहालय में पोशाक तथा वस्त्र संग्रह है और ये संग्रह बिहार से संबंधित नहीं है, इनमें कुछ चुने हुए तिब्बती वस्त्र हैं। ये हाल की अवधि के ही हैं (19वीं और 20वीं सदी)।