बिहार के पक्षियों, जानवरों और लुप्तप्राय प्रजातियों की खोज करने के लिए इस इलाक़े के संरक्षित क्षेत्र तथा वन्यजीव अभयारण्यों का अन्वेषण करें। बिहार में सबसे ज़्यादा पाये जाने वाले पेड़ों के साथ-साथ इस क्षेत्र के पशु, पक्षी, सरीसृप और मछलियों को भी दर्शाया गया है। इस दीर्घा में प्रदर्शित जातक कथाएं आपको पशु-पक्षी की कथाओं के साथ-साथ नैतिक शिक्षा से भी जोड़ती है।
इस दीर्घा में, बच्चे बिहार के पशु, पक्षी, पेड़ और पौधों की खोज करते हैं और उनकी पहचान करना सीखते हैं।
प्रवेश द्वार पर पीपल के पेड़ दर्शकों का स्वागत करता है। पीपल के साथ ही लगा एक बड़ा सा नक्शा है, जो बिहार के 21 अभयारण्य तथा 2 राष्ट्रीय उद्यानों को दर्शाता है। यह नक्शा उन वन्यजीवनों का चित्रण करता हैं, जो इन क्षेत्रों में पाये जाते हैं। बच्चों को पशु-पक्षियों के ख़तरे में पड़े तथा लुप्त प्रजातियों के बारे में जागरूक करने के साथ-साथ उन प्राणियों के बारे में भी बताया जाता है, जो कभी बिहार में पाये जाते थे। बच्चे एक पुनर्रचित प्राकृतिक संसार को देखने के लिए मचान पर चढ़ने में आनंद का अनुभव करेंगे। मचान के ऊपर से आप दूरबीन की सहायता से काले सिर वाले सारस पक्षी, रंगीन सारस तथा सारस क्रेन जैसे बहुत सारे पक्षियों को पहचान सकते हैं।
पेड़, अंतर्जलीय जीवन तथा वर्षा निर्माण के साथ विभिन्न प्राकृतिक दृश्यों को कृत्रिम रूप से दिखाया गया है और इससे आप स्वाभाविक रूप से बिहार के वृहत् पशु-पक्षी जीवन की खोज कर पाते हैं। इनमें से ज़्यादातर पशु-पक्षियों को जातक-कथाओं में दिखाया गया है तथा वो जीवंत उठते हैं, जब आप चट्टानी सतह पर लगे टच स्क्रीन मॉनिटर का उपयोग करते है। बिहार में पाये जाने वाले सामान्य पेड़ों को चित्रित किया गया है तथा साल एवं शीशम के पेड़ जैसे कुछ वृक्षों को उनके विस्तृत विवरण के साथ प्रदर्शित किया गया है।
विशाल वटवृक्ष कई पक्षियों का बसेरा है; जैसे, एशियन पैराडाइज़ फ़्लाइकैचर तथा बड़े आकार की उड़ने वाली गिलहरी, जो कि एक स्तनाधारी प्राणी है
मध्य तथा दक्षिण बिहार में, पक्षी और सरीसृप अक्सर पत्थर और चट्टानों के भीतर रहते हैं, जो उनके लिये सुरक्षित जगह हैं। एक दिलचस्प प्रदर्शनी की पुनर्रचना की गई है, जिसमें दिखाया गया है कि वन्यजीवन में किस तरह पहाड़ कई प्राणियों के घर बन जाते हैं।