मेरी वास्तुकला की कहानी
मैं बिहार संग्रहालय हूं ! मेरी दीर्घाऐं, कक्षों, गलियारों तथा आँगनों में फ़ैले मेरे ख़ज़ानों एवं कलाकृतियों की खोज करने के लिए आपका स्वागत है ! मैं पटना के बेली रोड के 13.5 एकड़ के एक भूमिखण्ड पर स्थित हूं। कुल निर्माण क्षेत्रफल 24,000 वर्ग मीटर है तथा कुल दीर्घा स्थल का क्षेत्रफल 9500 वर्ग मीटर तक है। इस परियोजना के लिए, जापान के माकी एवं एसोसिएट्स ने मुंबई, भारत के ओपोलिस आर्किटेक्ट्स के साथ मिलकर काम किया।
ज़िंदगी अनुभव का नाम है। प्रत्येक क्षण हम लगातार अनुभव करते ही रहते हैं। चाहे हम सचेत रूप से भले ही इसके बारे में नहीं सोचें, हम महसूस कर सकते हैं, स्पर्श कर सकते हैं, सुन सकते हैं और देख सकते हैं। महसूस करने की यह क्षमता कितनी अद्भुत है ! यह वही अहसास है, जो मां अपने बच्चों को सिखाती हुई अनुभव करती हैं और शिक्षक अपने छात्रों को राह दिखाते हुए महसूस करते हैं। मैं मूल रूप से अपने दर्शकों द्वारा इतिहास को महसूस करने के लिए अपने वास्तुकार द्वारा निर्मित हूं । आप राजाओं, कविओं, संत-फ़कीरों तथा देशवासियों के जादुई संसार में प्रवेश करेंगे, जहां समय का इतिहास जा चुका है और कई रुपांतरण अपने आकार ले चुके हैं।
जापानी वास्तुकार माकी एवं एसोसिएट्स एक प्रतियोगिता के माध्यम से इस काम के लिए चुने गए थे, जिस संरचना प्रारुप को उन्होंने प्रस्तुत किया था, वह कई कारणों से अनोखा था। पहला, उन्होंने मेरे भवन को एक विस्तार के रूप में देखा। वो वर्तमान पल में इतिहास के संदर्भ को समझने के लिए यहां से गुज़रते हुए दर्शकों को समय-बोध का अहसासस करवाना चाहते थे। उन्होंने संकल्पना कि मुझसे होकर गुज़रना किसी यात्रा की तरह हो, जिसमें इतिहास की ढेर सारी कहानियों से गुज़रने की व्यापक गुंजाईश हो। मेरे पास व्यापपक योजना है और मैं ऊंचाई में नहीं लंबाई में फ़ैला हुआ हूं, सिर्फ़ दो तलों वाले भवन तक। माकी एण्ड एसोसिएट्स ने आपकी अनुभूति को बढ़ाने के लिए ‘ओकू’ की अवधारणा को लागू किया। आप बंद स्थलों से खुली जगहों की तरफ़ प्रत्याशा और चिंतन के बीच भ्रमण करेंगे।
2000 से भी ज़्यादा वर्षों से इस क्षेत्र के लोग धातुओं के साथ कार्य करते आये हैं और दुनिया के दूसरे भागों के मुक़ाबले इन्होंने उन्नत तकनीकों का विकास कर लिया था। वास्तुकार ने मुझे गर्व के एक प्रतीक के रूप में देखा। दिल्ली में शान के साथ खड़े लौहस्तंभ के बारे में अनुमान किया जाता है कि इसका निर्माण किसी गुप्त राजा द्वारा कराया गया था। स्तंभ के मिश्रित धातु के कारण यह पूरी तरह ज़ंग मुक्त है।इसलिए, माकी एण्ड एसोसिएट्स ने लोगों को इस क्षेत्र में धातुविज्ञान की उत्तपत्ति की याद दिलाते हुए मेरे भवन में स्थायित्व को बनाये रखने के लिए आवरण के रूप में कोर-टेन-स्टील का उपयोग करने की बात सोची।
आख़िरी बात, लेकिन अहम बात कि मैं सीखने-समझने की एक जगह हूं। यह मेरा प्राथमिक कार्य है– एक ऐसे संस्थान की तरह कार्य करना, जो बिहार के गौरव को प्रतिबिंबित करता हो, जहां लोग विभिन्न तरह की वास्तविकताओं का पता लगा सकें तथा इस क्षेत्र के समृद्ध एवं प्राकृतिक इतिहास के बारे में सूचनासंपन्न हो सकें। यह वही जगह है, जहां कभी एक बीज बो दिया गया था ताकि बुद्धिमत्ता का वृक्ष पनपे। इसी धरती से हुए शासकों ने कभी प्राचीन भारत के महानतम साम्राज्यों का एकीकरण किया था। मैं लोगों के लिए बना हूं, वो यहां आयें और खोज करें, वो मुझे देखने के लिए यहां बार-बार आयें और हर बार सीखें या हर बार कुछ अलग समझ-बूझ लेकर यहां से लौटें।
विस्तार, यात्रा, प्रतीक तथा सीखने-समझने के परिदृश्य के माध्मय से, आप मेरे फैलाव को महूस करेंगे। आइये, देखिये और अन्वेषण कीजिए !