ग़ायब होती गोरैया
मैं कभी ख़ुशहाल पक्षी थी, जो लोगों के घरों में अपने घोसले बना सकती थी। ज़्यादातर लोगों से मेरे दोस्ताना संबंध थे। अपने घोसलों के लिए अपने चाहने वालों के बीच तथा उनके घरों की छतों की दरारों के भीतर कोनों में रहना मैं पसंद करती थी। मैं हर जगह थी। लेकिन धीरे-धीरे अनाज में इस्तेमाल होने वाले खरपतवार नाशक से मैं और मेरे रिश्तेदार परेशान हो गये। बहुत सारे मेरे दोस्त, भाई-बहन उस कारण से मर गये। लोगों ने बड़ी बड़ी इमारतें बनानी शुरू कर दीं और वहां उन छतों और दीवारों के साथ मेरे लिए घोसला बना पाना बहुत मुश्किल हो गया। सेल फ़ोन के टावरों से आती तरंगों की लहरें मेरे लिए ख़तरनाक साबित हुईं और उससे मेरे जीवन के तौर-तरीक़े ही बदल गए।
कभी नये दिन के स्वागत के लिए अपने घरों के सामने अनाज के चूड़े छिड़कते हुए हमारे लिए बेहतर गुंजाइश बनायी जाती थी। लेकिन आख़िरकार, ये तौर-तरीक़े ख़त्म हो जायेंगे, क्योंकि चीटियां और पक्षी आटे-चावल खायेंगे और हवा का झोंका बाक़ी सबको उड़ाकर रख देगा। जब मानवीय कार्यकलाप अपने प्राकृतिक दुनियां से जुड़ जाते हैं, तो हम जीवंत पारिस्थिकी तंत्र के हिस्से होते हैं। हम सभी एक दूसरे पर निर्भर हैं तथा जब हम सावधानी के साथ किसी अन्य को अपने साथ शामिल करते हैं, तब इससे जीवन-चक्र पुनर्जीवित हो उठता है। जब यह टूटेगा, हम सभी ख़त्म हो जायेंगे।
बिहार की सरकार ने मुझे अपना राज्य पक्षी बना लिया है ताकि आप मेरी रक्षा के लिए मुझे याद रख सकें। आप गोरैया के दोस्त हो सकते हैं और हमारे अस्तित्व के लिए हमारा साथ दे सकते हैं। बिहार संग्रहालय की बाल-दीर्घा में जाकर जानें कि आख़िर किस तरह !