पटना तीन हज़ार से ज़्यादा साल पुराना एक शहर है। यहां इतिहास सीखने समझने एवं मनोरंजन से संबंधित बहुत सारे दिलचस्प स्थान हैं। आप आपने आगे के अन्य स्थलों की यात्रा की योजना बना सकते हैं। बिहार संग्रहालय में खरीदे गये एक दिन के पास से आपको पटना संग्रहालय में नि: शुल्क प्रवेश कर सकते हैं। यहां पटना के कुछ महत्वपूर्ण स्थलों के बारे में जनिये।
1917 में स्थापित पटना संग्रहालय को व्यापक रूप से बिहार के सांस्कृतिक गौरव के रूप में स्वीकारा जाता है। इस भवन का निर्माण भारत-अरबी शैली में 1928 में किया गया था। यहां हज़ारों वस्तुओं का संग्रह है और तांबे का सबसे बड़ा संग्रह एवं सबसे ज़्यादा पाषाण मूर्तियां हैं। दुर्भल प्रदर्शित वस्तुओं में अश्मीभूत एक विशाल पेड़ तथा भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष वाली डिबिया है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसमें बुद्ध का अस्थि भस्म है।
कुम्हरार में पुराने पाटलिपुत्र के पुरातात्विक अवशेषों को देखने के लिए जायें, जहां ख़ुदाई से मौर्यकालीन 80 स्तंभों वाले सभागार का पता चला। यहां एक मठ और एक स्वास्थ्य केंद्र, आरोग्य विहार, की भी खोज की गई है। यहां मौर्यकालीन एक विशाल स्तंभ, मठों से आती किरणपुंज तथा मृण्मूर्तियों का प्रदर्शन किया जाता है। खुदाई से मिली कई कीमती कलाकृतियां अब बिहार संग्रहालय में मौजूद हैं।
इसे गांधी मेमोरियल इंस्टिट्यूशन के रूप में भी जाना जाता है, इस संग्रहालय की स्थापना पटना संग्रहालय के रूप में 1967 में की गई थी। यह भारत भर में फ़ैले ग्यारह गांधी संग्रहालयों में से एक है। यह 1971 में स्वायत्त हो गया। यह संस्थान सभी दर्शकों को ख़ामोश अतीत में ले जाता है। दृश्य जीवनी तथा अन्य खंड स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बिहार में गांधी जी की भूमिका पर रौशनी डालने के साथ उनकी जीवनी की प्रदर्शनी मंजूषा भी हैं।
1786 में ब्रिटिश कप्तान जॉन गार्स्टिन द्वारा एक अन्न भंडार के रूप में निर्मित गोल घर सही अर्थों में स्तूप वास्तुकला जैसा दिखता है। आप शहर और गंगा नदी के मनोरम दृश्य के लिए एक सर्पिल सीढ़ी के 45 पायदानों तक ऊपर चढ़ सकते हैं। यह पटना आने वाले दर्शकों के लिए एक अलग अनुभव है।
यह पटना का सबसे पुराना पुरातात्विक स्थल है, और इसे सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल भी माना जाता है। 15 फ़ीट व्यास लंबाई वाले और 32 मीटर गहरे इस कुंए को चारों ओर से आधी दूरी तक ईंट का घेराव है तथा नीचे की ओर लकड़ी के छल्ले डाले गये हैं। इस अथाह कुंआ के बारे में चारों ओर एक किंवदन्ति है कि अशोक इसका इस्तेमाल लोगों पर अत्याचार करने के लिए आग के एक गड्ढे के रूप में करता था। आप इसके नज़दीक स्थित चेचक के इलाज के लिए मशहूर सप्तमात्रिकाओं के पिंडों के साथ-साथ शीतला देवी मंदिर का दर्शन भी कर सकते हैं।
संजय गांधी जैविक उद्यान पटना चिड़ियाघर के रूप में लोकप्रिय है तथा इस उद्यान में लोग पिकनिक के लिए विशेष रूप से आते हैं। इन वर्षों में, इस परिरक्षित क्षेत्र का विस्तार 153 एकड़ में हुआ है, जिसमें एक जैविक उद्यान और एक चिड़ियाघर साथ-साथ है। इस चिड़ियाघर में 110 प्रजातियों के 800 जानवर हैं तथा एक जलचरगृह है। आप उद्यान के मुख्य भागों से होकर गुज़रने वाली टॉय ट्रेन की सवारी कर सकते हैं।
मशहूर मूर्तिकार देवी प्रसाद राय चौधरी द्वारा डिज़ाइन किया गया शहीद स्मारक सात आदमक़द आकार वाली पीतल की मूर्तियां हैं। यह प्रतिमा बहादुर युवा छात्रों को सम्मानित करने के लिए बनायी गयी थी, जिन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में झंडा फहराने के लिए अपनी जानों की आहुति दे दी थी। इसकी नींव 1947 में रखी गई तथा इसके बाद इटली में इसकी ढलाई की गयी।
पुस्तकालय खान बहादुर खुदाबक़्श की गहरी दृष्टि को दर्शाता है, जिन्होंने 4000 पांडुलिपियों के साथ इसे 1891 में स्थापित किया था। पुस्तकालय के संग्रह में आज 21,000 से अधिक ओरियेन्टल पांडुलिपियां और 2.5 लाख किताबें है। यहां मुगल और राजपूत चित्रों और तिमुरनामा सहित फ़ारसी एवं अरबी पांडुलिपियों का दुर्लभ संग्रह है। राष्ट्रीय महत्व केन्द्र के रूप में यह पुस्तकालय दुनियां भर से लोगों को आकर्षित करता है।
1978 में स्थापित श्रीकृष्ण विज्ञान केन्द्र, भारत की संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक स्वायत्त निकाय है। यहां विज्ञान के चमत्कार का पता 50 व्यावहारिक प्रदर्शनों के माध्यम से लगाया जा सकता है। दर्शकों में रोमांच और उत्तेजना से भरपूर संरचना वाले इस केन्द्र के आकर्षणों में आइना और चित्र, क्रमिक विकास, महासागर, विज्ञान पार्क, जुरासिक पार्क और भारतीय वैज्ञानिक शामिल हैं।
बुद्ध स्मृति उद्यान या बुद्ध स्मारक पार्क पटना की हलचल के बीचो-बीच एक नखलिस्तान (हरा-भला क्षेत्र) है। वातानुकूलित पुस्तकालय शांत तथा निर्विघ्न अनुसंधान के लिए एक शानदार स्थान प्रदान करता है। स्तूप के बारे में कहा जाता है कि इसमें वैशाली से लायी गई बुद्ध की भस्म रखी हुई है। यह सोमवार को बंद रहता है। स्तूप देखने के लिए प्रवेश शुल्क 50 रुपये हैं।
शनिग्रह के आकार में निर्मित यह तारामंडल एशिया के बेहतरीन तारामंडलों में से एक है और यह बड़ी संख्या में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को अपनी तरफ़ आकर्षित करता है। खगोल विज्ञान और संबंधित विषयों पर प्रदर्शनियां और फिल्म नियमित रूप से यहां आयोजित किये जाते हैं। अन्यथा सक्षम दर्शकों को किसी तरह की परेशानी नहीं हो, इसके लिए यहां ख़ास सुविधाएं हैं।